Madhu varma

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लेखनी कविता -झूठ-मूठ का खेल - बालस्वरूप राही

झूठ-मूठ का खेल / बालस्वरूप राही


यह छोटी-कार है,
मगर धमाकेदार है।
जल्दी टिकट कटाओ जी,
चलने को तैयार है!

इधर खड़ी यह रेल है,
कैसी रेलम-पेल है।
करो बैठने का नाटक,
झूठ मूठ का खेल है।

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